– नर्चर.फार्म किसानों को इस स्थायी और टिकाऊ प्रथा को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदान करेगा मुफ्त छिड़काव सेवाएं
– नर्चर.फार्म ने पहल के पहले चरण के तहत समाधान के विकास और विस्तार के लिए आईएआरआई और आईआईएम रोहतक के साथ की भागीदारी।
– कार्यक्रम में शामिल हुए किसान इस वीडियो में कर रहे हैं अपने अनुभव साझा। https://www.youtube.com/watch?v=p9zWIfGkFuo
दिल्ली, 25 अगस्त, 2021 (GNI):- विश्व स्तर पर स्थायी और टिकाऊ कृषि के लिए एक इंटीग्रेटेड टैक्नोलॉजी आधारित समाधान प्रदाता और यूपीएल के ओपनएजी नेटवर्क के एक हिस्से नर्चर.फार्म ने आज पंजाब और हरियाणा राज्यों में पराली जलाने की परंपरा को समाप्त करने के लिए अपने कार्यक्रम की घोषणा की। इस प्रोग्राम के तहत पराली को जलाने की बजाय भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) द्वारा विकसित बायोएंजाइम पूसा डीकंपोजर का स्प्रे किया जाएगा। यह बायोएंजाइम छिड़काव के बाद 20-25 दिनों के भीतर ठूंठ को डीकंपोज कर देता है और इसे खाद में बदल देता है, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता में और सुधार होता है। कंपनी ने इस कार्यक्रम में 5,00,000 एकड़ से अधिक क्षेत्र से जुड़े 25,000 से अधिक किसानों को शामिल किया है जो इस दीर्घकालिक कृषि पद्धति का लाभ उठाएंगे और वो भी कुछ खर्च किए बिना।
यह किसानों, नागरिकों और नीति निर्माताओं के लिए समान रूप से एक बड़ी राहत के रूप में आता है। हर साल, 57 लाख एकड़ में धान की पराली को जानबूझकर जलाने से हवा प्रदूषित होती है, जिससे आसपास के शहरों में लोगों के लिए सांस लेना भी दूभर हो जाता है। पराली जलाने से मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है जबकि पोषक तत्व और रोगाणु मर जाते हैं और इसी तरह कोई अन्य वनस्पति और जीव जो आग के रास्ते में आता है, उनका भी खात्मा हो जाता है। हालांकि किसी अन्य व्यवहार्य विकल्प की कमी के कारण हर साल किसान पराली को जलाने पर मजबूर होते हैं, क्योंकि पराली को जलाने की प्रक्रिया उन्हें सस्ती पड़ती है, यह तेजी से पूरी हो जाती है और इसके बाद अगले फसल चक्र के लिए समय पर भूमि को साफ किया जा सकता है।
नर्चर.फार्म की इस पहल पर टिप्पणी करते हुए यूपीएल लिमिटेड के ग्लोबल सीईओ जय श्रॉफ ने कहा, ‘‘हम इस पहल को लेकर बहुत उत्साहित हैं, और हमें विश्वास है कि इससे किसानों और समाज दोनों को लाभ होगा। स्थिरता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता अद्वितीय है। ओपन एजी के माध्यम से यूपीएल एक ऐसा नेटवर्क तैयार कर रहा है जो पूरे उद्योग के सोचने और काम करने के तरीके को बदल देता है और जो कृषि प्रक्रिया को और अधिक टिकाऊ बनाने में मदद करेगा।’’
नर्चर.फार्म के सीओओ और बिजनेस हेड ध्रुव साहनी ने कहा, ‘‘75 प्रतिशत भारतीय किसान एक हेक्टेयर या उससे कम भूमि के मालिक हैं। उनके लिए, समय और संसाधन सीमित हैं, और इसलिए वे नई चीजों को आजमाने के जोखिम से दूर ही रहते हैं। वे फसल जलाने के नकारात्मक प्रभावों से अवगत हैं, लेकिन नवीनतम तकनीक और कृषि मशीनीकरण तक पहुंच की कमी के कारण वे फसल को जलाने के लिए मजबूर हैं। बची हुए पराली को संभालने में किसी भी तरह की देरी सीधे उनके अगले फसल चक्र को प्रभावित करती है, जिसका उनकी उपज और अंततः उनकी आय पर बुरा असर पड़ता है।’’
‘‘इसी स्थिति को देखते हुए नर्चर.फार्म सामने आया और उसने आईएआरआई द्वारा विकसित एक बायो-डीकंपोजर पूसा के उपयोग को आगे बढ़ाने की पहल की। आईआईएम रोहतक के साथ साझेदारी करते हुए हमने एक संपूर्ण प्रणाली विकसित की है जहां किसान हमारे नर्चर.फार्म ऐप के माध्यम से सेवा के लिए पंजीकरण कर सकते हैं और अपनी बड़ी छिड़काव मशीनों का लाभ उठाकर अपनी पराली को विघटित कर सकते हैं। निशुल्क सेवा प्रदान करने से किसानों को स्थायी परिणाम सुनिश्चित करने वाली प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जो कि नर्चर.फार्म पर हमारी सभी सेवाओं का मूल है। हम इस पहल को लेकर उत्साहित हैं क्योंकि इससे फार्म सस्टेनबिलिटी के साथ-साथ पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य की दिशा में सीधा लाभ होगा।’’
प्रोटोकॉल सत्यापन और परियोजना की निगरानी आईआईएम-रोहतक के सहयोग से विकसित की गई है। प्रो. धीरज शर्मा, निदेशक, आईआईएम रोहतक ने कहा, ‘‘हमें नर्चर.फार्म की इस महत्वपूर्ण पहल का हिस्सा बनकर खुशी हो रही है, जहां हम इस अभूतपूर्व पैमाने और अनुपात में एक स्थायी कृषि मॉडल का संचालन करके प्रत्यक्ष प्रभाव पैदा कर सकते हैं। पराली जलाना पर्यावरण और आर्थिक चिंता का एक प्रमुख कारण है। जमीनी स्तर पर पूसा स्प्रे के उत्पादन, खरीद और उपलब्ध कराने के लिए एक रूपरेखा तैयार करके, हम इस नुकसानदेह प्रथा को समाप्त करने के बारे में आश्वस्त हैं। हम इस टिकाऊ और दीर्घकालिक प्रयोग से जुड़ी यात्रा को शुरू करने और पर्यावरण, स्वास्थ्य और खेत पर इसके प्रभाव का पता लगाने के लिए उत्साहित हैं।’’
पहल का मुख्य आकर्षण यह है कि इसमें शामिल सभी हितधारकों के लिए यह एक फायदे का सौदा साबित होता है। किसानों के लिए, पराली के अपघटन से कार्बनिक कार्बन और मिट्टी के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है और अगले फसल चक्र के लिए उर्वरकों की लागत में उल्लेखनीय कमी आती है। एक स्थायी कृषि अभ्यास होने के नाते यह पहल ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी और हवा में निकलने वाले विषाक्त पदार्थों और कालिख में कमी को भी सुनिश्चित करती है। जब कुछ समय के लिए इस पद्धति को अपनाया जाता है, तो यह मिट्टी के पोषक स्वास्थ्य और माइक्रोबियल गतिविधि में काफी वृद्धि करता है, जिससे किसानों के लिए कम लागत पर बेहतर उपज और उपभोक्ताओं के लिए जैविक उत्पाद सुनिश्चित की जा सकती है। नर्चर.फार्म ने अगले तीन वर्षों में पंजाब और हरियाणा राज्यों में पराली जलाने की परिपाटी को समाप्त करने के लिए अपने अभियान को बढ़ाने की योजना बनाई है।ends
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