क्या आपके मन में कोरोना टीकाकरण से जुड़े कई सवाल उठ रहे हैं? पद्मश्री और डॉ. बी. सी. राय प्रेसिडेंशियल अवाॅर्डी डॉक्टर संजीव बगई के साथ बातचीत के आधार पर गोदरेज वैक्सीन रेफ्रिजरेशन टीम ने आपके मन में उठ रहे कोरोना टीकाकरण से जुड़े हर सवाल का जवाब देने का प्रयास किया है

राष्ट्रीय, 18 मार्च, 2021 (GNI): देश भर में लोग कोविड-19 टीकाकरण से गुजर रहे हैं, राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस पर गोदरेज समूह की प्रमुख कंपनी गोदरेज एंड बाॅयस के गोदरेज एप्लायंसेज ने पद्मश्री और डॉ. बी. सी. राय प्रेसिडेंशियल अवाॅर्डी व नेफ्रॉन क्लिनिक के चेयरमैन डॉक्टर संजीव बगई के सहयोग से कोराना टीकाकरण से जुड़े कुछ सवालों के जवाब देने का प्रयास किया है। प्रस्तुत हैं कुछ अंश –

क्या काम करते हंै टीके?

टीके ऐसे एजेंट हैं जो शरीर में एंटीबॉडी का उत्पादन करके प्रतिरक्षा को प्रेरित करते हैं। एक एंटीजन (एक बाहरी प्रोटीन या वायरस या बैक्टीरिया) के संपर्क में आने पर, शरीर अपने एंटीबॉडी के भंडार के साथ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पैदा करता है। यह एक तरह से ऐसे योद्धा हैं, जो संक्रमण से लड़ते हैं। यह प्रतिरक्षा दिन, सप्ताह या महीनों की अवधि में विकसित होती है।

विभिन्न स्तरों पर प्रतिरक्षा के विभिन्न स्तरों को उत्पन्न करने के लिए विभिन्न स्तरों पर टीके दिए जाते हैं। कुछ टीके बूस्टर खुराक के रूप में दिए जाते हैं, जबकि अन्य को सालाना तौर पर दिया जाता है। कुछ ऐसे भी हैं जिनका एक ही शॉट जीवनभर के लिए सुरक्षा प्रदान करता है। जन्म के समय दिए जाने वाले कुछ सामान्य टीके हैं बीसीजी, ओरल पोलियो वैक्सीन, डिप्थीरिया, टेटनस, खसरा, हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी। इनमें अब नया नाम कोविड-19 वैक्सीन का जुड़ गया है।

तेजी से विकसित की गई कोविड वैक्सीन

आम तौर पर, दवा निर्माता कंपनी को कोई वैक्सीन विकसित करने में 10 से 15 साल तक का समय लगता है, जिसमें कई चरणों के परीक्षण और निगरानी एंजेसियों की ओर से अनुमति आदि शामिल हैं। कोरोना महामारी के दौरान वैक्सीन विकसित करने के लिए असाधारण स्तर पर दुनिया एकजुट हो गई, जीएवीआई और डब्ल्यूएचओ जैसे विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने अभूतपूर्व सहयोग किया ताकि घातक वायरस से लड़ने के लिए तेज गति के साथ टीके लाए जा सके। समय की मांग को देखते हुए इस बार निगरानी एजेंसियों ने सुरक्षा और परीक्षणों की नैतिकता से समझौता किए बिना अपना अनुमोदन देने में तेजी दिखाई।

वैक्सीन के पीछे की तकनीक

अब दुनिया भर में, कई कोविड-19 वैक्सीन हैं जिनसे टीकाकरण किया जा रहा है। कई कोविड-19 वैक्सीन एमआरएनए आधारित हैं। 2006, 2010 और फिर 2012 में एमईआरएस और एसईआरएस महामारी के दौरान इस तकनीक का उपयोग किया गया है और यहां तक कि इबोला महामारी के दौरान भी इसकी कोशिश की गई थी। अन्य टीके जो वेक्टर-आधारित टीके हैं वे एक पुराने प्लेटफॉर्म और एक समय-परीक्षण वाली तकनीक का उपयोग करते हैं। यह एक एडेनो वेक्टर-आधारित तकनीक के रूप में भी जाने जाते हैं, जिसमें एडेनोवायरस पर निर्मित वायरस पिग्गीबैक्स होता है और जल्दी प्रतिरक्षा बढ़ाने के लिए शरीर में प्रवेश करवाया जाता है।

एक मजबूत कोल्ड चेन की आवश्यकता

एक वैक्सीन तैयार करते समय से ही इसे टीका निर्माण इकाई में एक विशेष तापमान पर बिलकुल सही अनुपात के तहत किया जाता है। भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश के लिए जहां परिवेश का तापमान 45 डिग्री तक जा सकता है, आवश्यक तापमान बनाए रखने के लिए पूरी कोल्ड चेन मजबूत होनी चाहिए। कुछ टीके होते हैं जिनमें 2 से 4 डिग्री की आवश्यकता होती है, कुछ को 4 से 8 डिग्री की आवश्यकता होती है। कुछ एमआरएनए टीके हैं, जिनकी आवश्यकता – 70 से 90 डिग्री कोल्ड स्टोरेज है। एक बार वैक्सीन के आइसबॉक्स से या कोल्ड स्टोरेज से बाहर आ जाने के बाद वह ‘कुछ’ दिनों तक ही सक्रिय रहती है। ऐसे में, आवश्यकता सैकड़ों या हजारों के सामूहिक भंडारण की नहीं बल्कि लाखों खुराक के भंडारण की है, जिन्हें ऐसे कंटेनरों की आवश्यकता होती है जो तापमान बनाए रख सकते हैं। अब से पहले भारत में ऐसा कभी नहीं हुआ। इस मामले में भारतीय उद्योग की सराहना की जानी चाहिए जो तापमान बनाए रखने के लिए चिकित्सा जगत की मदद करने के लिए आया है। दरअसल, टीकाकरण का कोई मतलब ही नहीं है अगर वह निष्क्रिय या अप्रभावी हो गया है।

सरकार ने इस कार्य में निजी क्षेत्र को बड़े पैमाने पर शामिल किया है, क्योंकि ऐसे अभूतपूर्व समय में सरकार और निजी के बीच भेद मिटता-सा दिखता है। निजी क्षेत्र अपने सभी ज्ञान और विशेषज्ञता के साथ मददगार साबित हुए हैं। कई जगह उन्होंने पूरी परोपकारिता से काम किया है, जिनमें टीकों के परिवहन करने में मदद से लेकर इन्हें समुचित तापमान के साथ अंतिम गंतव्य तक पहुंचाना है। न केवल महानगरों बल्कि गांवों-कस्बों तक के लिए यह काम किया जा रहा है।

हर्ड इम्युनिटी- एक आवश्यकता

हर्ड इम्युनिटी या झुंड की प्रतिरक्षा बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें एक पूरा समुदाय बीमारी के खिलाफ प्रतिरक्षा विकसित करता है। यह या तो प्राकृतिक संक्रमण के माध्यम से होता है या एक सक्रिय प्रतिरक्षा के रूप में प्रेरित टीका होता है जिसे समुदाय संक्रमण फैलाना बंद कर देता है। यह ट्रांसमिशन की श्रृंखला को तोड़ने जैसा है और इसके लिए पूरे देश की आबादी के 60-70 फीसदी के टीकाकरण की आवश्यकता है, जो कि बहुत बड़ा काम है! जितनी जल्दी टीके दुनिया भर के मनुष्यों तक पहुंचेंगे उतनी ही जल्दी और आसानी से इस महामारी पर पकड़ बनाने में मदद मिलेगी। भारत गर्मियों के समाप्त होने से पहले लगभग 30 करोड़ लोगों को टीका लगा देगा।

प्रतिरक्षा के इस स्तर तक पहुंचने के संदर्भ में, यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि वायरस भी उत्परिवर्तित होते हैं, यानी अपना रूप बदलते हैं। यह वायरस की खुद को बचाए रखने के लिए एक सामान्य प्रवृत्ति है। वायरस के उत्परिवर्तित होने से यह अधिक पारगम्य हो जाता है और इसकी संक्रामकता बढ़ जाती है। यह एंटीबाॅडी को बेअसर करते हुए प्रतिरोधी हो जाता है। यह एक और महत्वपूर्ण कारण है कि टीकाकरण कार्यक्रम को जल्दी और समयबद्ध होने की आवश्यकता है।

कोविड -19 वैक्सीन खुराक

भारत के परिदृश्य सहित अब तक के अधिकांश टीकों को दो खुराक की आवश्यकता होती है। खुराक का समय वैक्सीन के साथ बदलता रहता है। दूसरी खुराक या बूस्टर कोशिकाओं को प्रेरित करना शुरू कर देता है जो दीर्घकालिक प्रतिरक्षा में महत्वपूर्ण हैं। एमआरएनए टीके तीन से चार सप्ताह के अंतराल के बीच यानी 28 से 30 दिनों के बीच दिए जाते हैं। 2 खुराक वाले तंत्र में रोगियों के डेटा का रखरखाव महत्वपूर्ण है।

कई फार्मा कंपनियां अब इंट्रानैसल वैक्सीन के साथ आ रही हैं, जो एकल-खुराक है और इसमें इंजेक्शन की जरूरत नहीं रहती; यह नाक से दी जाती है। एकल खुराक बेहतर अनुपालन में मदद करता है और प्रशासन की आसानी और सुविधा को बढ़ाता है।

वैक्सीन को लेकर संकोच और सुरक्षा

वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर उठते प्रश्नों को इंगित करने के लिए कोई केस रिपोर्ट नहीं आई है। टीका, अपने साथ कई अंगों पर प्रभाव नहीं छोड़ता। कैसी भी नपुंसकता, मस्तिष्क, दिल या रीढ़ की हड्डी को नुकसान नहीं पहुंचाता है! दुष्प्रभाव इन्फ्लूएंजा शॉट्स की तुलना में भी छोटा है। यह प्रभावकारिता की दृष्टि से सुरक्षित है। वैक्सीन की जमीनी स्तर पर प्रभावशीलता विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय और व्यवस्थापकीय लॉजिस्टिक कारणों से नीचे गिरती है। 50-60 फीसदी से अधिक प्रभावकारिता वाला कोई भी टीका बहुत अच्छा काम कर रहा है।

वैक्सीन को लेकर जो भी झिझक, अज्ञानता या इसे न लगवाने की जो भी जिद है, इसे मजबूत सार्वजनिक संदेश के साथ दूर किया जा रहा है। करोड़ों स्वास्थ्य देखभालकर्मी पहले ही टीकाकरण करवा चुके हैं। हमें यह संदेश फैलाने की जरूरत है। सभी को ज्ञान और वैज्ञानिक तथ्यों का संवाहक होना चाहिए। हर डॉक्टर को एक वैक्सीन एंबेसडर होना चाहिए। उचित जागरूकता के साथ, वैक्सीन के संकोच को समाप्त किया जा सकता है। टीके को लेकर झिझक सबसे बुरी चीज है, जिसे देश और दुनिया से मिटाया जा रहा है। जब तक हर कोई सुरक्षित नहीं है तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है। इसलिए, हमें अधिक से अधिक संख्या में लोगों तक यह संदेश पहुंचाने की आवश्यकता है और अधिक से अधिक सुरक्षा के साथ, भारत को टीकाकरण करने की आवश्यकता है।

ध्यान रखने योग्य बात

जैसा कि भारतीय परिदृश्य में किसी को भी वैक्सीन दिए जाने के साथ माना जा रहा है कि 13-14 दिन के बाद बी कोशिकाएं, यानी एंटीबॉडी का निर्माण शुरू होता है, हालांकि अभी भी कोई सुरक्षात्मक स्तर तक पहुंचा हुआ नहीं माना जाना चाहिए। सुरक्षा के स्तर तक पहुंचने के लिए एंटीबॉडीज का निर्माण होने में कम दो से तीन सप्ताह का समय लगता है। जब दूसरी खुराक या बूस्टर दिया जाता है, वह प्रतिरक्षा को आगे बढ़ाता है, न केवल बी कोशिकाओं बल्कि यह टी कोशिकाओं को प्रेरित करना शुरू कर देता है, जो दीर्घकालिक प्रतिरक्षा में महत्वपूर्ण हैं।

एक प्राकृतिक संक्रमण अधिकतम तीन महीने तक और टी-कोशिकाओं को आठ महीने तक के लिए एक एंटीबॉडी सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन खराब प्रतिरक्षा के चलते लंबा समय लगता है। टीके अधिक मजबूत, लंबे समय तक चलने वाली और सटीक प्रतिरक्षा प्रदान करते हैं।

वैक्सीन लगने के बाद, व्यक्ति कई महीनों तक एंटीबॉडी का निर्माण करना जारी रखता है, शायद एक साल तक भी। यही कारण है कि, एक व्यक्ति को मास्क पहनना जारी रखने की सलाह दी जाती है भले ही कोरोना संचरण श्रृंखला को तोड़ने के लिए टीकाकरण किया गया हो।

स्वास्थ्य देखभाल पर महामारी का प्रभाव

यह महामारी मानवता पर सीधा हमला है। इसने दुनिया भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की मौजदा स्थिति को उजागर कर डाला है, जो अब बड़े बदलाव से गुजर रहा है। केवल सस्ती, सुलभ और मान्यता प्राप्त स्वास्थ्य सेवा ही नहीं, बल्कि निवारक, भविष्य के लिए उपयोगी, व्यक्तिगत स्वास्थ्य सेवा और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान देना आदर्श होगा। अंत में, स्वास्थ्य सेवा में डिजिटल प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, लॉजिस्टिक्स, चिकित्सा आपूर्ति श्रृंखलाओं आदि में प्रौद्योगिकी की भूमिका का विशेष रूप से लाभ उठाना सबसे महत्वपूर्ण है।

-गोदरेज मेडिकल रेफ्रिजरेशन ऑफ गोदरेज एप्लायंसेज, गोदरेज एंड बॉयस द्वारा जनहित में जारी।

गोदरेज ग्रुप की प्रमुख कंपनी गोदरेज एंड बाॅयस इस महामारी के दौर में देश की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध है। चाहे वह हाॅस्पिटल बेड एक्यूऐटर्स हो या वेंटिलेटरों के लिए इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक वाल्व जैसे चिकित्सा घटक या फिर आबादी को घरों में सुरक्षित रखने के उद्देश्य से कीटाणुनाशक उपकरण हो या लोगों को काम पर सुरक्षित रखने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग वाले आॅफिसेज की स्थापना। साथ ही कंपनी मेड इन इंडिया मेडिकल रेफ्रिजरेटर और फ्रीजर के साथ देश की सेवा करने में गर्व महसूस कर रही है, ऐसे समय में, जब इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है।

About Godrej & Boyce: Godrej & Boyce (‘G&B’), a Godrej Group company, was founded in 1897, and has contributed to India’s journey of self-reliance through manufacturing. G&B patented the world’s first springless lock and since then, has diversified into 14 businesses across various sectors from Security, Furniture, Appliances, Aerospace to Infrastructure and Defence. Godrej is one of India’s most trusted brands serving over 1.1bn customers worldwide daily.

About Godrej Appliances: Godrej Appliances, a business unit of Godrej & Boyce, is one of the leading Home Appliances players in India. Godrej & Boyce was the first Indian Company in 1958 to manufacture Refrigerators and since then Godrej Appliances has expanded its portfolio across many other categories like Washing Machines, Air Conditioners, Microwave Ovens, futuristic Thermo-electric cooling solutions, Air Coolers, Deep Freezers, highly specialized Medical Refrigerators and more recently, UVC Technology-Based Disinfecting devices and Dishwashers, all powered by the driving philosophy of ‘Things made thoughtfully’.

This thought extends from human-centric design to planet centric design. Environment is a core value at Godrej. Both manufacturing units of Godrej Appliances became the first in the country to win the coveted Platinum Plus Green Co certification for their pioneering green manufacturing practices.

The brand takes pride in not just its carefully designed products and environment-friendly technologies, but also best in class after-sales service delivered through over 680 service centers and more than 4500 SmartBuddy service experts spread all over the country. To learn more visit :https://www.godrej.com/godrej-appliances

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